Positive India सीरीज़ में आज हम जानेंगे आशा कंडारा की कहानी जो कभी स्वीपर के पद पर काम करती थी लेकिन फिर कड़ी मेहनत से बनी डिप्टी कलेक्टर।
Positive India: कभी थी सफाईकर्मी फिर कड़ी मेहनत से बनी डिप्टी कलेक्टर – जानें आशा कंडारा की कहानी
पूरे देश में आशा कंडारा का नाम कई दिनों से चर्चा में हैं। राजस्थान के जोधपुर की 40 वर्षीय आशा कंडारा ने राजस्थान प्रशासनिक सेवा में 728वीं रैंक हासिल की और जल्द वह डिप्टी कलेक्टर बनने वाली हैं। सिविल सेवा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के अलावा अन्य लोगों के लिए खासकर महिलाओं के लिए उनकी कहानी एक प्रेरणा का स्त्रोत है।
32 साल की उम्र में हुआ था तलाक:
अनुसूचित जाति से आने वाली आशा कंडारा की शादी बहुत कम उम्र में हुई थीं। 12वीं पास करने के बाद ही उनकी शादी हो गयी थी और 32 साल की उम्र में उनका तलाक हुआ था। इस दौरान आशा कंडारा दो बच्चों की मां बन चुकी थीं। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि उनके रिश्तेदारों ने काफी कुछ कहा मगर मायके वालों ने बहुत सपोर्ट किया।
2013 में दोबारा पढ़ाई शुरू की:
2013 में आशा कंडारा ने दोबारा पढ़ाई करने का फैसला लिया। 2013 में उन्होंने ग्रेजुएशन में एडमिशन लिया और 2016 में उन्होंने ग्रेजुएशन पूरा कर लिया था। इसके बाद उन्होंने नौकरी ढूंढना भी शुरू कर दिया था।
क्या तुम्हारे खानदान में कोई कलेक्टर बना है?
जब उन्होंने नौकरी ढूंढना शुरू किया तो उन्हें तरह-तरह के ताने सुनने को मिले जैसे, क्या तुम्हारे खानदान में कोई कलेक्टर बना है? तब वह कलेक्टर का मतलब भी नहीं जानती थी। गूगल में सर्च करके उन्होंने इसका मतलब जाना और फिर प्रशासनिक सेवा में जाने का फैसला लिया।
2019 में नगर निगम में सफाईकर्मी के तौर पर मिली नौकरी:
आशा कंडारा ने 2018 में राज्य प्रशासनिक सेवा का फ़ॉर्म भरा और प्रीलिम्स क्लियर किया जिसके बाद उन्होंने मेंस परीक्षा दी। इसी दौरान 2019 में उनकी नौकरी नगर निगम में सफाईकर्मी के तौर पर लग गयी थी। बच्चों के लालन पालन और घर के खर्च चलाने के लिए उन्होंने ये नौकरी ज्वाइन कर ली थी।
सुबह 6 बजे काम पर जाती थीं, वापस आकर घर के काम करने के बाद करती थीं पढ़ाई
आशा ने एक इंटरव्यू में बताया कि उन्होंने झाड़ू लगाने के काम को कभी छोटा नहीं समझा। वह 6 बजे काम पर निकल जाती थीं फिर वापस आकर घर के काम करने के बाद वह पढ़ाई करती थीं। उन्होंने बताया की काम के बाद वह बुरी तरह थक जाती थी मगर घरवाले उन्हें हमेशा हौसला देते थे। पढ़ाई के लिए उन्होंने नींद में भी काफी कटौती की थी।
मैं कर सकती हूँ तो कोई भी कर सकता है:
आशा का कहना है कि अगर वो कामयाब हो सकती हैं तो कोई भी महिला कामयाब हो सकती है। आशा की ये कहानी सभी लोगों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है। जोधपुर नगर निगम की मेयर विनीता सेठ ने साफा बांधकर उन्हें बधाई दी इसके अलावा पूरे दफ्तर के लोगों ने उन्हें तालियां बजाकर बधाई दी।
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